रोज की पूजा Daily Puja Vidhi के अनुसार करनी चाहिए। भारत देश में बहुत सारे ऐसे लोग हैं जो अपने दिन की शुरूआत भगवान की पूजा से करते हैं लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि ऐसे बहुत कम लोग ही हैं जो पूजा को पूरी विधि अनुसार करते हों। तो आइए आज इस ब्लॉग में हम आपको बताते हैं कि दैनिक पूजा की वो क्या बिधि है जिसे अपनाने से जीवन के सभी कष्ट दूर हो जाएंगे।
सबसे पहले तो यह जान और समझ लें कि हिन्दू धर्म में करोड़ों देवी देवता है और इन सबकी पूजा एक साथ करना संभव नहीं है इसलिए कृपया पूजा के दौरान ज्यादा से ज्यादा नाम लेने की होड़ में न पडें और मन को शांत रखकर सिर्फ उतना ही करें जो आपको यहां बताया जाए।
पूजा के लिए तैयार हों तो स्नान आदि करके स्वच्छ कपड़ों को धारण करें और इसके बाद जल अक्षत और पुष्प लेकर पूजा करने बैठ जाएं। मंत्र याद न हों तो संपूर्ण daily puja vidhi लिखित रुप में अपने पास रख लें।
1: इसके बाद सबसे पहले आपको करना होगा पवित्रिकरण जिसके लिए बाएं हाथ में जल लेकर उसे सीधे हाथ से ढक लें। अब
ॐ अपवित्रः पवित्रो वा, सर्वावस्थांगतोऽपि वा।
यः स्मरेत्पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः॥
ॐ पुनातु पुण्डरीकाक्षः पुनातु पुण्डरीकाक्षः पुनातु।
इस मंत्र का जप करें और जल को अपने शरीर पर और झिड़क लें।
2: इसके बाद होगा आचमन। आचमन की प्रक्रिया तीन बार होगी और प्रत्येक बार मंत्र के पश्चात जल को ग्रहण करना होगा।
ॐ अमृतोपस्तरणमसि स्वाहा।
के बाद पहला आचमन और
ॐ अमृतापिधानमसि स्वाहा।
के बाद दूसरा आचमन और
ॐ सत्यं यशः श्रीर्मयि श्रीः श्रयतां स्वाहा।
के बाद तीसरा आचमन करें और इसके पश्चात स्वयं को वाणी मन तथा अंत:करण से शुद्ध मानें। इसके बाद जीवन आप स्वयं को ईश्वर के एकदम समीप पाएंगे।
ॐ चिद्रूपिणि महामाये, दिव्यतेजः समन्विते। तिष्ठ देवि शिखामध्ये, तेजोवृद्धिं कुरुष्व मे॥
3: पूजा के तीसरे चरण में शिखा स्थान को स्पर्श करें और समस्त देवी देवताओं से यह वंदना करें कि यहां अर्थात मस्तिष्क के इस केंद्र बिंदू में केवल ज्ञान ही रहे। अच्छे विचार रहें और दूसरें के प्रति प्रेम रहे।
4: इसके बाद शुरू होता है पूजा का चौथा चरण जिसमें आपको प्राणायाम करना है। प्राणायाम अर्थात अपने प्राणों को एक आयाम देना। इसमें जब भी प्राण वायु को अंदर खींचे मन में यह भावना रखें कि यह प्राण वायु हमारे शरीर में तेज और ऊर्जा लेकर प्रवेश कर रही है जबकि श्वास को छोड़ना सारे अवगुणों और बुराइयों को छोड़ने के संकेत के रुप में हो। अब मन में इन विचारों को रखें और
ॐ भूः ॐ भुवः ॐ स्वः ॐ महः, ॐ जनः ॐ तपः ॐ सत्यम्। ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्। ॐ आपोज्योतीरसोऽमृतं, ब्रह्म भूर्भुवः स्वः ॐ।
इस मंत्र का जप करें।
5: इसके बाद पूजा का पांचवा चरण आता है जिसे न्यास कहते हैं। न्यास का उद्देश्य शरीर के सभी अंगों को शुद्ध करना और खुद को पूजन के योग्य बनाना होता है। इसमें अपने बाएं हाथ में जल लें और अपने दाएं हाथ की अंगुली को उसमें भिगोए और एक एक मंत्र के साथ अपने अंगों में उसका स्पर्श करें।
ॐ वां मे आस्येऽस्तु। (मुख को)
ॐ नसोर्मे प्राणोऽस्तु। (नासिका के दोनों छिद्रों को)
ॐ अक्ष्णोर्मे चक्षुरस्तु। (दोनों नेत्रों को)
ॐ कर्णयोर्मे श्रोत्रमस्तु। (दोनों कानों को)
ॐ बाह्वोर्मे बलमस्तु। (दोनों भुजाओं को)
ॐ ऊर्वोमे ओजोऽस्तु। (दोनों जंघाओं को)
ॐ अरिष्टानि मेऽंगानि, तनूस्तन्वा मे सह सन्तु। (समस्त शरीर पर)
आत्म शुद्धि की इस प्रक्रिया के बाद देव साधना की बारी आती है।
देव साधना: देव स्थान को फूल धूप और अक्षत से सजाइए। इसके बाद प्रथम आराध्य देव भगवान गणेश की स्तुति करें। तत्पश्चात सभी देवी देवताओं को प्रणाम करें और उनके प्रति आभाव व्यक्त करें।
अब दिन के अनुसार उस दिन के देवता की पूजा करें तथा संबंधित मंत्र को कम से कम एक माला जपें। जप के लिए सबसे पवित्र माला पांच मुखी रुद्राक्ष के दानों की माला होती है। इसे प्राप्त करने के लिए आप यहां क्लिक करें। यह अभिमंत्रित माला है जो अधिक से अधिक लाभ देगी।
इसके बाद पूजा की समाप्ति करनी है और अगर आपको अपने ईष्ट की आरती गानी हो तो वो गाए। पूजा समाप्त करें और प्रसाद ग्रहण करें और दूसरों को भी दें। यह याद रखें की आपकी पूजा daily puja vidhi से करने पर ही संपूर्ण होगी।